( तर्ज - अजि ! कौन जगा जगनेकी है ० )
नर ! कौन सहायक नाथबिना ?
उस नाथबिना है व्यर्थ जिना ॥टेक ॥
जो सब जीवनका जीवन है ,
सब प्राणिनका जो तन - मन है ।
यह ग्याननको क्यों न चिन्हा ?
उस नाथबिना ० ॥१ ॥
चीटीसे ब्रह्मातक सारे ,
दिखते जग उसिके उजियारे ।
यह जो जाने वह रहत बना ,
उस नाथबिना ० ॥ २ ॥
जो कुछ चलत , मिलत फल जाके ,
जो कुछ बढत , पडत है फाँके ।
सबने दया उसिहीकि लिन्हा ,
उस नाथबिना ० ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे यह जानो ,
तब पूरा गुरु - ग्यान पछानो ।
क्यों अभिमान झूठ बना ?
उस नाथबिना ० ॥४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा